दक्षिणी रूस में अज़ोव सागर पर मौजूद एक बन्दरगाह टैगान्रोग में 29 जनवरी 1860 को जन्मे एंटेनो पावलोविच चेखव के लिये मुंशी प्रेमचंद की कही गई यह बात कहीं से भी अतिशयोक्ति नहीं लगती। चेखव के पिता एक दुकानदार थे और चेखव की माँ एक आला दर्जे की कहानीकार थीं। शायद यही कारण था कि चेखव ने एक दफ़े कहा था कि “हमें हमारी क़ाबिलियत हमारे पिता से मिली थी और हमारी रूह हमारी माँ से”।
चेखव अपने छः ज़िंदा भाई बहनों में तीसरे थे। उन्होंने 1884 में चिकित्सा विज्ञान में स्नातक किया और एक चिकित्सक के रूप में काम करने लगे। चेखव ने अपने अधिकांश साहित्यिक जीवन में चिकित्सक के रूप में अभ्यास किया । उन्होंने एक बार कहा था “चिकित्सा मेरी वैध पत्नी है और साहित्य मेरी रखैल है।”
चेखव बहुत प्रतिबद्ध और कामयाब डॉक्टर थे. ये भी कहा जाता है कि अकाल और महामारी के दिनों में चेखव ने डट कर रूस के लोगों को अपनी चिकित्सा से मदद पहुंचाई। हालांकि टॉलस्टॉय जैसे अफ़सानानिगारों का मानना था कि चेखव की डॉक्टरी उनके लेखन में बाधा है लेकिन खुद चेखव का मानना था कि डॉक्टरी ने उनके लेखन को और ज़्यादा बेहतर किया।
चेखव ने अपनी पहली कहानी 1880 में “ड्रैगनफ्लाई” नाम की पत्रिका में प्रकाशित की थी। इस कहानी से उनकी क़ाबिलियत तुरंत ज़ाहिर हो गई थी, इसलिए जल्द ही वे अन्य रिसालों में भी छापे जाने लगे।
1883 से 1886 के बीच फैट और थिन, गिरगिट, पेरेसिलिल जैसे मशहूर काम उनकी कलम से निकले। एक दिलचस्प बात यह है कि सबसे पहले उन्होंने छद्म नाम “अंतोसा चेखोन्टे” का इस्तेमाल किया था।
1886 में सेंट पीटर्सबर्ग के अखबार नोवोए वर्मा ने चेखव को नौकरी की पेशकश की। वह इस अखबार के साथ काम करने के लिए राज़ी हो गए और अपने मजमुए “मोटले स्टोरीज़” शाया करने में कामयाब रहे। उस वक़्त तक चेख़व अपने नाम के साथ कहानियाँ लिखने लग गए थे।
उन्नीसवीं सदी के 80 के दशक में, चेखव ने अपना पहला महत्वपूर्ण नाटक “इवानोव” लिखा। उसके बाद सीगल, 1895-1896 में लिखा गया और 1896 में ही इन्हें रूसी रिसाले में शाया किया गया ।
21 अप्रैल 1890 को चेखव ने मास्को छोड़ दिया और सखालिन और पूर्व की यात्रा पर निकल गए। इस जगह की यात्रा ने चेखव का अंतर्मन झकझोर कर रख दिया। उस जगह की हालत ने चेखव को परेशान किया जो कि उनकी रचनाओं में भी साफ़ झलकता है। इस यात्रा से लौटने के बाद उनकी ज़िन्दगी और लिखने दोनों में ही बदलाव आया जो कि उनकी किताब ‘सखालिन द्वीप’ में साफ़ तौर पर नज़र आता है।
साल 1892 में चेखव मालिखावो चले गए और वहां ख़ुद का एक घर खरीदा। वहाँ रहते हुए वे हैजा से पीड़ित मरीज़ों का इलाज भी करते रहे। यही नहीं बल्कि अपने इस अनुभव को वो अपनी कहानियों में भी उतारते रहे। इसलिए ही चेखव की कहानियों को पढ़कर उस वक़्त के रूस का भी अंदाज़ा आसानी से लग जाता है। 1898 में चेखव ने वाल्ता में अपना घर लिया।
अपनी ज़िंदगी के आख़िरी वक़्त में भी चेखव दो से तीन घण्टे मरीज़ों को देखते थे। उन्हें टी बी था। साल 1904 में 15 जुलाई के दिन बीमारी से लड़ते हुए “छोटी कहानियों के सबसे बड़े लेखक” एंटेनो पावलोविच चेखव ने महज 44 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया।
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