Eknath Shinde : महाराष्ट्र में सियासी उथल पुथल मची हुई है और ऐसा तब हुआ है जब विधान परिषद के चुनाव में बी जे पी को जीत मिली है, बीजेपी के सारे उम्मीदवारों की जीत ने महाराष्ट्र की सरकार को हिला कर रख दिया है, ऎसे में ही एक और नाम हमारे सामने बार बार आ रहा है ‘एकनाथ शिंदे’। कहा जा रहा है कि शिंदे 40 विधायकों के साथ गुवाहाटी में हैं जिस वजह से उद्धव सरकार पर संकट गहराया हुआ है।
आख़िर एक नाथ शिंदे कौन हैं, जिन्होंने महाराष्ट्र की सियासत में भूचाल ला दिया है? आइए जानते हैं:
महाराष्ट्र का सतारा जिला. सात पहाड़ियों से घिरे हुए इस जिले ने बहुत लंबा इतिहास देखा हुआ है। इसी सतारा जिले की पहाड़ी जवाली तालुका में साल 1964 की फरवरी की 9 तारीख़ को एकनाथ शिंदे जन्म हुआ। शिंदे मराठी समुदाय से तअल्लुक़ रखते हैं। कक्षा 11 तक शिंदे ठाणे में पढ़ते रहे और फिर ऑटो रिक्शा का हैंडल थाम लिया। शिंदे ने वागले स्टेट में ऑटो ड्राइवर का काम किया.
शिन्दे जब वागले स्ट्रीट में ऑटो चलाते थे तब 1980 का दशक था, शिंदे युवा थे, और उस वक़्त महाराष्ट्र में युवाओं पर शिवसेना सुप्रीमो बालासाहेब ठाकरे का बड़ा प्रभाव हुआ करता था, अन्य युवाओं की तरह शिंदे भी बालासाहेब ठाकरे से प्रभावित थे।
80 के दशक जिस ठाणे में शिंदे ऑटो ड्राइविंग करते थे उसी जिले के तत्कालीन शिव सेना जिलाध्यक्ष आनंद दिघे हुआ करते थे, शिंदे पर इनका खासा असर पड़ा और शिंदे ने शिवसेना जॉइन की। शिंदे शिवसेना जॉइन करने के बाद किसान नगर शाखा प्रमुख बने, उस के बाद एकनाथ कभी रुके नहीं. पार्टी द्वारा सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों जैसे मुद्रास्फीति, कालाबाजारी, व्यापारियों द्वारा ताड़ के तेल जैसी आवश्यक वस्तुओं की जमाखोरी पर उस वक़्त हुए आंदोलनों में एकनाथ बड़ा चेहरा रहे। महाराष्ट्र कर्नाटक सीमा विवाद 1985 में एकनाथ 40 दिनों तक बेल्लारी जेल में रहे।
उन की इस कर्मठता और जुझारूपन को परुस्कार मिलना ही था, आला कमान की नज़र शिंदे पर पड़ी और फिर साल आया 1997 का. शिंदे को ठाणे नगर निगम में पार्षद का चुनाव लड़ने का टिकट मिला, शिंदे जीत गए, न सिर्फ जीते बल्कि बहुत बड़े अंतर से जीते. इसी टी एम सी मतलब ठाणे नगर निगम में जहां वो पार्षद से शुरू हुए थे साल 2001 में सदन के नेता बन गए और 2004 तक बने रहे.
साल 2004 एकनाथ शिंदे के लिए बड़ा साल था, वो बालासाहेब की गुड लिस्ट में शामिल हो गए थे.सफ़र बहुत आगे तक चल पड़ा था। इसी साल बालासाहेब ने शिंदे को ठाणे विधानसभा से टिकट दिया, एक बार फिर एक नाथ शिंदे भारी बहुमत से जीते, ठाणे के विधायक बने. एकनाथ शिंदे जिस शहर में ऑटो चलाते थे अब उसी शहर को चला रहे थे. शिंदे को साल 2005 में ठाणे जिला प्रमुख बनाया गया, शिवसेना के पहले ऐसे विधायक जो किसी जिले के प्रमुख बने.
2004 के चुनाव के बाद शिंदे रुके नहीं. साल 2009, 2014, 2019 में भी विधानसभा चुनाव में झंडे गाड़े. साल 2014 में विधायक दल के नेता और फिर उसके बाद नेता प्रतिपक्ष भी बने. लोक निर्माण विभाग के मंत्री के रूप में काम किया और साल 2019 में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री की जिम्मेदारी भी अपने कंधों पर ली।
शिंदे का नाम पार्टी में यूं ही नहीं बढ़ा था , 2005 में नारायण राणे ने पार्टी छोड़ दी और फिर बाद में राज ठाकरे ने भी पार्टी छोड़ी , यह वो समय था जब शिंदे बेहद तेजी से उभरते चले गए। साल 2019 में जब किसी शिवसैनिक को ही मुख्यमंत्री बनाये जाने की बात हुई तो शिंदे का नाम भी आगे आया था. उनके समर्थक जगह जगह उन्हें भावी मुख्यमंत्री बता कर पोस्टर लगा चुके थे।
एकनाथ शिंदे के ये विद्रोही सुर अचानक छिड़ गए हों ऐसा भी नहीं है, शिंदे 2019 में गठबंधन की सरकार बनने से ही नाराज़ हो गए थे,हालांकि शिंदे उस वक़्त भी शिवसेना के साथ डटे रहे जब अजीत पवार के साथ मिलकर फडणवीस ने सरकार बनाने की तैयारी की थी.
जिस वक्त शिवसेना फणनवीस सरकार के साथ गठबंधन में थी शिंदे का कद बहुत ऊँचा था, कहा जाता है कि उद्धव ठाकरे के सत्ता में आने के बाद उन्हें दरकिनार किया जाता रहा , उनके विभाग में आदित्य ठाकरे के दखल से भी वो नाराज़ रहते थे। उनका महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनने का सपना उन से दूर होता दिखा तो 44 विधायकों के साथ उन्होंने विद्रोह कर दिया.विधायकों के साथ पहले सूरत और अब गुवाहाटी में शिंदे रुके हुए हैं.
देखना यह है कि शिंदे का यह विद्रोह क्या महाराष्ट्र में तख्ता पलट कर सकता है या उनके यह बाग़ी सुर थम जाएंगे, यह तो वक़्त ही तय करेगा मगर इस वक़्त एकनाथ शिंदे जिन्होंने कभी ऑटो ड्राइविंग की थी आज महाराष्ट्र की सत्ता को हिला रखा है।
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