Sourav Ganguly : साल 2002. इंग्लैंड की टीम भारत के दौरे पर थी. मुम्बई के मैदान में छठा ओ डी आई इन दोनों टीमों के बीच खेला जा रहा था. इंग्लैंड ने यह मुक़ाबला 5 रन से जीता था. इस के बाद इंग्लिश ऑल राउंडर एंड्रयू फ्लिनटॉफ ने अपनी टी शर्ट उतार कर पूरे मैदान में दौड़ लगाई. यह जश्न था. जश्न से कहीं ज़्यादा भारतीय टीम को चिढ़ाने का एक तरीका.
कट टू: नेटवेस्ट सीरीज 2002. फाइनल मैच. इस बार मैदान था क्रिकेट का मक्का कहा जाने वाला लॉर्ड्स. भारतीय टीम इंग्लैंड के दौरे पर थी. भारतीय टीम के सामने 326 का विशाल लक्ष्य था. लेकिन भारत की टीम ने सहवाग, गांगुली, युवराज और मोहम्मद कैफ की ज़बरदस्त बल्लेबाज़ी की बदौलत टीम ने इस असम्भव से दिखने वाले स्कोर को चेज़ कर लिया. चेज़ होते ही लॉर्ड्स की बालकनी पर एक व्यक्ति ने तुरन्त अपनी टी शर्ट उतारी और लहराने लगा. यह बदला था. मुम्बई का बदला. टी शर्ट लहराने वाले का नाम है सौरव गांगुली. उस वक़्त के भारतीय टीम के कप्तान.
आज सौरव का जन्मदिन है.
सौरव गांगुली मतलब “दादा” का जन्म 8 जुलाई 1972 के रोज़ कोलकाता में हुआ. पिता चंडीदास और माता निरूपा गांगुली के ये छोटे बेटे हैं. सौरव के बड़े भाई का नाम स्नेहाशीष गांगुली है. पिता बिजनेस मैन थे. मगर गांगुली की बिजनेस में रुचि नहीं रही. वे क्रिकेट खेलते. अंडर 19 से सीनियर क्रिकेट तक सफर गांगुली का बड़ा शानदार रहा. शुरू शुरू में सौरव दाएं हाथ के बल्लेबाज़ थे. उनके भाई स्नेहाशीष भी क्रिकेट खेलते थे. उनकी किट सौरव के इस्तेमाल में आ सके इस लिए सौरव ने बाएं हाथ की बल्लेबाज़ी करना शुरू कर दिया. हालांकि क्रिकेट भी उनकी पहली पसंद नहीं थी वे फुटबॉल खेलते थे. मने पक्के बंगाली थे. बाद में भाई के कहने पर सौरव ने अकादमी में प्रवेश लिया.
कठिन परिस्थितियों में मिली कप्तानी
गांगुली का डेब्यू वैसे तो साल 1991 में ही हो गया था मगर उन्हें बाद में ड्राप किया गया. गांगुली ओर आरोप था कि वे टीम के साथ संयोजन नहीं बनाते मसलन उन्होंने ग्राउंड पर पानी ले जाने से मना कर दिया था हालांकि इस आरोप की पुष्टि नहीं हो पाई. फिर आता है साल 1996 जब गांगुली का डेब्यू इंग्लैंड के सामने हुआ. मैदान वही था जहाँ टी शर्ट लहराई. लॉर्ड्स का. गांगुली ने डेब्यू पर शतक ठोक दिया.
साल 1999 में ऑस्ट्रेलिया दौरे पर सचिन ने कप्तानी छोड़ने का मन बना लिया था. वो सफल कप्तान नहीं साबित हो पा रहे थे. उन्होंने सौरव को उपकप्तान बनाया था. यहीं से सौरव के कप्तान बनने की कहानी शुरू हो गई थी.
गांगुली भारत के सबसे सफलतम कप्तान में से एक गिने जाते हैं. गांगुली जिस वक्त कप्तान बनाये गए थे उस वक़्त भारत मैच फिक्सिंग के दौर से गुज़र रहा था. मगर गांगुली ने उस वक़्त ही एक मजबूत टीम तैयार करनी शुरू कर दी. ये मैच जीतने के लिए खेलते थे. लोग कहते हैं कि कोहली को धोनी की बनाई हुई टीम विरासत में मिली थी. यही बात धोनी पर भी लागू होती है. उन्हें दादा की तैयार की हुई टीम विरासत में मिली थी.
दादा की दादागिरी
सौरव गर्म मिजाज़ और बेबाक अंदाज़ के इंसान थे. स्टीव वॉ ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि 2001 में सौरव 11 बार टॉस के लिए देर से आये थे और यह जानबूझ कर किया जाता था. नासिर हुसैन ने इस बात के लिए दादा की शिकायत भी की. कोच ग्रेग चैपल से भी उनके रिश्ते कुछ ठीक नहीं रहे. साल 2003 में उन की कप्तानी में भारत ने वर्ल्ड कप फाइनल खेला. 2005 में पाकिस्तान से टेस्ट जीत. असल मे भारतीय टीम को जीतने की आदत दादा ने ही लगाई थी.
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