Guru Dutt: टाइम्स मैगज़ीन दुनिया की शायद सबसे प्रसिद्ध मैगज़ीन है. इसी मैगज़ीन ने दुनिया की सर्वश्रेष्ठ सर्वकालिक महानतम फिल्मों की एक सूची बनाई थी. इसी सूची में फ़िल्म कागज़ के फूल और प्यासा भी शामिल की गईं थीं.
Guru Dutt: ये दोनों ही फ़िल्में गुरुदत्त की थीं. 9 जुलाई को गुरुदत्त का जन्म दिन होता है. गुरुदत्त की फिल्में आज क्लासिक कहलाती हैं. मगर उस वक़्त क्रिटिक्स को उनकी फिल्में ख़ास नहीं लगती. लेकिन लोगों में उनका ख़ासा क्रेज था. उनकी फिल्में कमाई के मामले में भी बहुत शानदार काम करती थीं. गुरुदत्त के बारे में फ़िल्मों से इतर भी बहुत से किस्से हैं.
Guru Dutt : आज उन के जन्मदिन पर आइये उन से जुड़े कुछ खास किस्सों पर नज़र डालें:

यूरोप में ख़ासा क्रेज
Guru Dutt: गुरुदत्त की फिल्में महज हिंदुस्तान ही नहीं यूरोप में भी बहुत फेमस रहीं हैं. 80 के दशक में उनकी फिल्में यूरोप में प्रदर्शित की गईं और लोगों ने उन की फिल्मों को बेहद पसंद किया.
प्यासा फ़िल्म देख कर रो पड़े थे नेहरू
गुरुदत्त की फ़िल्म प्यासा विश्व की सर्वश्रेष्ठ क्लासिक फिल्मों में शुमार की गई है. बहुत से लोगों के लिए यह फ़िल्म अब भी उतनी ही नई है. ओम पुरी ने एक बार कहा था “प्यासा जैसी फिल्में इंसान को अंदर तक झकझोर कर रख देती हैं. जब पंडित नेहरू ने प्यासा देखी तो वो भी रो पड़े थे.”
कोठे पर सात महीने की नाचती गर्भवती लड़की
गुरुदत्त जब प्यासा बना रहे थे तो उनकी इच्छा थी कि कहानी किसी कोठे पर ही आधारित हो. मगर गुरुदत्त कभी कोठे पर नहीं गए थे. जब वो पहली बार कोठे पर गए तो वहां उन्हें सात महीने की गर्भवती युवती को नाचते देखा. गुरुदत्त से ये देखा नहीं गया और वो वहां नोटों की गड्डी रख कर आ गए. उन्होंने निर्माताओं से कहाँ उन्हें साहिर के गाने जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ हैं के लिए सीन मिल गया है.

Guru Dutt : गुरुदत्त का प्रेम त्रिकोण
गुरुदत्त को फ़िल्म बाज़ी के सेट पर गीत रॉय मिलीं थीं और उन्हें वहीं उनसे प्यार हुआ था. अपनी छोटी बहन ललिता के हाथों वे दोनों पत्र भेजते थे. अभिनेत्री वहीदा रहमान को लाने वाले भी गुरुदत्त थे. उनकी बढ़ती नज़दीकियों की वजह से गीता और दत्त में खटास आने लगी थी.

मंगलोर के थे गुरुदत्त
नाम से बंगाली समझे जाने वाले गुरुदत्त असल मे मंगलोर के निवासी थे. वे कोंकणी बोलते थे.
Guru Dutt: मरने के तरीकों पर बात
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक गुरुदत्त अपने दोस्त अबरार के साथ मरने के तरीकों पर बात करते थे. वे कहते “नींद की गोलियों को उस तरह लेना चाहिए जैसे माँ अपने बच्चे को गोलियाँ खिलाती है…पीस कर और फिर उसे पानी में घोल कर पी जाना चाहिए”. अबरार को यह मज़ाक लगता था. मगर उनकी मौत वाली रात जब अबरार उन के घर पहुंचे तो गुरु दत्त उन्हें मृत मिले बगल की मेज़ पर एक गिलास रखा हुआ था जिसमें एक गुलाबी तरल पदार्थ अभी भी थोड़ा बचा हुआ था. अबरार समझ गए कि उन्होंने ख़ुद को मार लिया है.
उनकी पत्नी गीता से उनकी खटास बहुत ज़्यादा बढ़ चुकी थी. वे अवसाद में थे और पहले भी दो बार आत्महत्या का प्रयास कर चुके थे. दोस्त पूछते कि वे मरना क्यों चाहते हैं तो गुरुदत्त कहते :
‘मैं अपनी ज़िंदगी से असंतुष्ट नहीं हूं. मैं खुद से और खुद में असंतुष्ट हूं. ये बात सच है कि मेरे पास वो सब कुछ है, जिसकी लोग चाहत रखते हैं. लेकिन मेरे पास वो नहीं, जो ज़्यादातर लोगों को हासिल है. एक कोना, जहां मुझे शांति मिल सके. अगर मुझे ये मिल जाता है, तो फिर मेरी ज़िंदगी जीने लायक होगी.’
गुरुदत्त
उन्हें 9 जुलाई कभी पसन्द नहीं रहा , और यही दिन उनका जन्मदिन है.
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