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Mangal pandey

Mangal Pandey: वो क्रांतिवीर जिसके नाम पर अंग्रेज़ों ने विद्रोहियों को “पांडेय” बुलाना शुरू कर दिया

Mangal Pandey: बंगाल नेटिव इन्फेंट्री के सिपॉय नम्बर 1446 मतलब शहीद मंगल पांडेय. आज मंगल पांडेय का जन्मदिन है.

Mangal Pandey: साल 1857. दिन 8 अप्रैल का है. सिपॉय नम्बर 1446 को फाँसी दी जा रही है. उसके साथियों के सामने. ऐसा करने का कारण यह था कि अंग्रेज उस के साथियों के आगे नज़ीर पेश करना चाहते थे कि दोबारा ऐसा विद्रोह करने की हिम्मत न करें. मगर इस फाँसी ने देश में विद्रोह की आग बुझाई नहीं बल्कि बढ़ाई. जो आख़िरश 1947 में जा कर रुकी.

मंगल पांडेय का जन्म साल 1827 में उत्तर प्रदेश के बलिया के नगवा गांव में हुआ. हालांकि इतिहासकारों में इनके जन्म के स्थान को ले कर भी मतभेद रहे हैं. कुछ का मानना है कि पांडेय का जन्म फैज़ाबाद जिले के अकबरपुर तहसील के सुरहूपुर गांव में एक भूमिहार ब्राम्हण दिवाकर पांडेय के घर हुआ था.

हिंदुस्तान में ईस्ट इंडिया कम्पनी व्यापार के उद्देश्य से आई थी. मगर कुछ ही सालों में कम्पनी ने व्यापार के अलावा अपनी सेना तैयार करनी शुरू कर दी थी. साथ ही कई राज्यों पर अधिकार भी जमा लिया था. इन रेजिमेंट्स में ही भारतीयों को भी सिपॉय के तौर पर शामिल किया जाने लगा. मंगल पांडेय भी एक रेजिमेंट बंगाल नेटिव इन्फेंट्री में शामिल हो गए.

कम्पनी ज़्यादा से ज़्यादा हिंदुओं और मुसलमानों को अपनी रेजिमेंट्स में लेती थी. कारण यह था कि गोवा में
उच्च जाति के हिंदुओं को ईसाई बना कर पुर्तगालियों ने प्रबंधन बहुत अच्छा कर लिया था और इस बात से अंग्रेज भी प्रभावित थे और इसी बात को अपनाना चाहते थे.

मंगल पाण्डेय जब बीस साल के थे तब उन्होंने रेजिमेंट जॉइन की थी. साल 1849 का था. बंगाल नेटिव इन्फेंट्री की 34 वीं रेजिमेंट की 5 वीं कम्पनी में सिपॉय मंगल लंबे और हृष्ट पुष्ट थे.

Mangal Pandey: एनफील्ड पी 53 राइफल और चर्बी भरे कारतूस

साल 1857 में कम्पनी की सेना ने एक नई किस्म की बुलेट कार्ट्रिज लाई गई. ये बुलेट एनफील्ड पी 53 राइफल के लिए लाई गई थी. बंगाल की रेजिमेंट में भी ये कारतूस लाई गईं. इन कारतूसों को इस्तेमाल करने के लिए उन्हें पहले दाँत से काटना होता था. सिपाहियों में इस कारतूस को ले कर ये अफवाह थी कि इन कारतूसों में गाय और सुअर की चर्बी है. गाय जहाँ एक ओर हिंदुओ के लिए पवित्र थी वहीं सुअर मुसलमानों के लिए हराम.

भारतीय सिपाहियों की नज़र में यह कम्पनी द्वारा जानबूझ कर किया गया काम था. उन्हें विश्वास था कि उन्हें नीचा दिखाने के लिए ऐसा किया गया है.

Mangal Pandey: ये कारतूस ही मंगल पांडेय की बग़ावत का मुख्य कारण था.

बीबीसी के एक लेख में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार ” लेफ़्टिनेंट जे ए राइट ने मंगल पांडे के मुकदमे में गवाही देते हुए इसका ज़िक्र किया था, ‘एक बार एक निम्न जाति के खलासी ने एक ब्राह्मण सिपाही के लोटे से पानी पीने की इच्छा प्रकट की. उस सिपाही ने ये कहते हुए उसे पानी पिलवाने से इंकार कर दिया कि इससे उसका लोटा दूषित हो जाएगा. इस पर उस निम्न जाति के व्यक्ति ने जवाब दिया, जल्द ही तुम्हारी जाति का अस्तित्व ही नहीं रहेगा क्योंकि तुम्हें सुअर और गाय की चर्बी से बने कारतूसों को काटना पड़ेगा. जल्द ही ये ख़बर आग की तरह फैल गई कि सरकार उनकी जाति और धर्म को भृष्ट करने पर आमादा है.’

सिपाहियों ने इन कारतूसों के इस्तेमाल से इनकार कर दिया. दिन था 2 फरवरी 1857. जगह बैरकपुर. सिपाहियों ने विरोध शुरू कर दिया. बैरकपुर में एक टेलीग्राफ दफ़्तर को जला दिया. अंग्रेज अफ़सरो के घर पर आग लगे हुए तीर भी चलाये गए.

Mangal pandey birth anniversary

मंगल पांडेय का विद्रोह

रेहान फ़ज़ल बीबीसी में लिखते हैं कि 15 से 27 मार्च तक पांडेय ने भगवान शिव और हनुमान की पूजा अर्चना की. इसके बाद 29 मार्च को शाम 5 बजकर 10 मिनट पर विरोध शुरू किया. हंगामे को सुन कर लेफ्टिनेंट बो ग्राउंड पर आ गए. मंगल पांडेय ने उनपर गोली चला दी. गोली बो के घोड़े को लगी और वो गिर पड़ा. बो ने जवाब में मंगल पांडेय पर गोली चलाई जो मंगल को नहीं लगी.

थोड़ी ही देर बाद वहां मेजर ह्यूसन आ गया. ह्यूसन और बो ने तलवारें निकालीं. पांडेय ने भी अपनी तलवार निकाल कर दोनों पर हमला बोल दिया. वहां मौजूद कोई भी सिपाही अफसरों की मदद के लिए नहीं आया. कुछ ही देर में शेख पलटू नाम के सिपाही ने अफसरों की मदद की. उसने मंगल को पीछे से पकड़ लिया. दोनों अफसर बच निकले. शेख पलटू को बाद में प्रमोशन भी मिला.

ह्यूसन ने अपनी गवाही में कहा :

मंगल के वार से मुझे ज़्यादा चोट नहीं आई महज कुछ खरोचें आई. मंगल ने लेफ्टिनेंट बो पर ज़्यादा हमला किया. उनकी जैकेट ख़ून से सनी हुई थी. इस बीच एक सिपाही ने मेरी पीठ पर बंदूक के हत्थे से प्रहार किए. मैं नीचे गिर गया. मैं नहीं देख सका वह कौन था? मैं इतना ही देख सका कि उसने रेजिमेंट की वर्दी पहनी थी.

कुछ ही देर बाद वहां कर्नल वेलर पहुंचे. उन्होंने सैनिकों से मंगल को गिरफ्तार करने को कहा. कोई सैनिक आगे नहीं आया. वेलर के बाद कमांडिंग ऑफिसर हियरसे भी वहां पहुंचा. उसने अपनी बंदूक लहराई और कहा ‘अगर मेरे कहने पर किसी ने मार्च नहीं किया तो मैं उसे गोली मार दूंगा”.

सैनिक मंगल पाण्डेय की तरफ़ बढ़ने लगे. मंगल ने सैनिकों को बहन की गाली दी. वे इस बात पर ख़फ़ा थे कि उनके साथियों ने उन्हें उकसाया और अब साथ नहीं दे रहे. मंगल ने अपनी बंदूक अपने सीने पर लगाई और पैर से फायर कर दिया. वे घायल ज़मीन पर गिर गए. उनकी वर्दी में आग लग गई. एक सिख सैनिक ने उनकी तलवार निकाली. मंगल गिरफ्तार कर अस्पताल भेज दिए गए.

उन्हें निर्धारित तिथि 18 अप्रैल से 10 दिन पहले ही फांसी दे दी गई. 34 वी रेजिमेंट को भंग कर दिया गया. सिपाहियों को ‘पांडे’ कहने की परंपरा की शुरुआत मंगल पांडेय से ही हुई. अंग्रेज विद्रोहियों को ‘पैंडीज़’ कहने लगे ये भी मंगल पांडेय की वजह से था.

मंगल पांडेय की शहादत को कुछ लोग नशे में लिप्त होने के बाद किया हुआ काम बताते हैं. मंगल ने अपने ट्रायल में कबूल किया था कि वे अफीम और भांग लेते रहे हैं. बात चाहे जो भी रही हो मगर मंगल पांडेय ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की पहली आहुति दी थी. जिसने पूरे देश को जगाने का काम किया.

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