Shree Krishna: धर्म की अधर्म पर जीत के इस युद्ध में भगवान श्री कृष्ण का बहुत बड़ा योगदान रहा है
Shree Krishna: महाभारत हिन्दू धर्म का एक बहुत ही पवित्र ग्रन्थ है. मगर क्या आप जानते हैं कि इस युद्ध में स्वयं श्री कृष्ण को भी एक श्राप दिया गया था.
यह श्राप भगवान कृष्ण को कौरवों की माता गांधारी ने दिया था.
Shree Krishna: महाभारत युद्ध के पश्चात दिया था श्राप
कुरुक्षेत्र में हुए महाभारत के युध्द में पांडवों की जीत में श्री कृष्ण का बहुत बड़ा योगदान था। यदि यह कहा जाए कि श्री कृष्ण के बग़ैर पांडव यह युद्ध कभी नहीं जीत पाते तो इस बात में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
Shree Krishna: गांधारी का श्राप
युद्ध के बाद महर्षि व्यास के शिष्य संजय ने जब गांधारी को बताया कि अपने साथियों और द्रौपदी के साथ पांडव हस्तिनापुर में आ चुके हैं, तो वे बेहद दुखी हो गईं। जब उन्हें यह पता चला कि श्री कृष्ण भी पांडवों के साथ हैं तो वे अत्यंत क्रोधित हो गईं और उन्होंने श्रीकृष्ण को श्राप दे दिया।
गांधारी ने कहा “अगर मैंने भगवान विष्णु की सच्चे मन से पूजा की है तथा निस्वार्थ भाव से अपने पति की सेवा की है, तो जैसा मेरा कुल समाप्त हो गया, ऐसे ही तुम्हारा वंश तुम्हारे ही सामने समाप्त होगा और तुम देखते रह जाओगे। द्वारका नगरी तुम्हारे सामने समुद्र में डूब जाएगी और यादव वंश का पूरा नाश हो जाएगा। ” श्रीकृष्ण ने मुस्कुराते हुए गांधारी को उठाया और कहा “ ‘माता’ मुझे आपसे इसी आशीर्वाद की प्रतीक्षा थी, मैं आपके श्राप को ग्रहण करता हूं। इसके पश्चात हस्तिनापुर में युधिष्ठिर का राज्याभिषेक होने के बाद भगवान श्रीकृष्ण द्वारका चले गए।
एक और कथा के अनुसार , युद्ध के पश्चात जब गाँधारी युद्ध स्थल पर गईं तो उनका मन पीड़ा से भर उठा और वे उद्वेलित हो गईं। यहाँ पर श्री कृष्ण ने अपनी एक लीला रच कर गाँधारी को यह महसूस कराया कि उन्हें बहुत तेज़ भूख लगी है और वे नज़दीक के ही एक पेड़ पर लगे फल को तोड़ने का प्रयास करने लगीं । जब उनका हाथ उस फल तक नहीं पहुंच सका तो उन्होंने अपने लिए कुछ चीज़ें जोड़ीं और उस पर खड़े हो कर फल तोड़ कर खा लिया। क्षुधा शांत होने पर जब गाँधारी को यह अहसाह हुआ कि जिन चीजों पर खड़े हो कर उन्होंने फल तोड़ा है वह उनके पुत्रों के ही क्षत विक्षत शरीर हैं। श्री कृष्ण की इस माया से अत्यंत क्षुब्ध हो कर गाँधारी ने श्री कृष्ण को उनके पूरे कुल के सर्वनाश हो जाने का श्राप दे दिया, जिसे भगवान श्री कृष्ण ने मुस्कुराते हुए स्वीकार किया।
गांधारी के श्राप का क्या प्रभाव हुआ?
गाँधारी का श्राप धीरे धीरे सच होने लगा। महाभारत युद्ध के 36 साल बाद द्वारका के लोग मदिरा सेवन करने लगे। लोग धीरे-धीरे विलासितापूर्ण जीवन का आनंद लेने लगे। गांधारी के श्राप का प्रभाव यादवों पर इस तरह हुआ कि उन्होंने अनुशासन तथा विनम्रता को त्याग दिया।
एक बार यादव उत्सव के लिए समुद्र के किनारे इकट्ठे हुए। वह मदिरा पीकर झूम रहे थे और किसी बात पर आपस में झगड़ने लगे। झगड़ा इतना बढ़ा कि वे वहां उग आई घास को उखाड़कर उसी से एक-दूसरे को मारने लगे। उसी घास से यदुवंशियों का नाश हो गया साथ ही, द्वारका नगरी भी समुद्र में डूब गई। कहा जाता है कि साम्ब को मिले श्राप की वजह से उगी हुई घासों में जहरीले लोहे के तत्व थे, इसलिए उगी हुई घासें बेहद ज़हरीली थीं ।
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