Raghunath Mahto: 5 अप्रैल,1778 की रात राँची जिला अन्तर्गत सिल्ली प्रखंड के लोटा पहाड़ के निकट एक सभा हो रही थी,अचानक तेज़ गोलीबारी की आवाज़ से पूरा इलाका गूँज उठता है। जब गोलीबारी रुकती है तो चुआड़ विद्रोह के महानायक रघुनाथ महतो इस मुठभेड़ में शहीद हो चुके होते हैं।
झारखंड की पावन भूमि सिर्फ खनिज संपदा की नहीं बल्कि वीरों की भी धनी भूमि है। झारखंड की धरती ने भारतीय स्वाधीनता संग्राम को ना जाने कितने हीं वीर सपूत दिए जिन्होंने मातृभूमि की रक्षा में अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। ऐसे हीं एक योद्धा थे अमर शहीद रघुनाथ महतो।उनका जन्म वर्तमान में झारखंड के सरायकेला-खरसावां जिला के निमडीह प्रखंड स्थित घुटियाडीह में हुआ था। किसान परिवार में जन्मे रघुनाथ महतो बचपन से ही स्वाभिमानी,निडर एवं विद्रोही प्रवृति के थे।ऐसा बताया जाता है कि एक बार एक तहसीलदार की उनके पिता से किसी बात को लेकर झड़प हो गयी थी तो उनहोंने तहसीलदार को पीटते हुए अपने गाँव से भगा दिया था।
अपनी संगठन शक्ति के दम पर उनहोंने करीब 5000 आदिवासियों की सशस्त्र सेना तैयार की हुई थी जिससे
वर्तमान के पुरुलिया, धनबाद, हजारीबाग, चक्रधर, चाईबासा, सरायकेला,सिल्ली और ओडिशा के कुछ भाग में अंग्रेजी अफ़सर भयभीत रहते थे।उन दिनों ईस्ट इंडिया कंपनी ना केवल शासन करती थी बल्कि आदिवासी इलाकों से खनिज संपदा को लूटकर रेल एवं सड़क मार्ग से कलकत्ता(अब कोलकाता) बंदरगाह ले जाती थी जहाँ से इसे इंगलैंड भेज दिया जाता था।
अंग्रेजों के इसी शोषण के खिलाफ चुआड़ विद्रोह शुरु हुआ। चुआड़ विद्रोह सर्वप्रथम बंगाल के मेदनीपुर के इलाके में शुरु हुआ था। उन दिनों अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह करने वाले को चुआड़ या बदमाश कहा जाता था,इसिलिए इस विद्रोह को चुआड़ विद्रोह कहा गया। यह विद्रोह किसी जाति विशेष का नहीं था, इस में विभिन्न समुदाय के लोग शामिल थे।
Raghunath Mahto: 1769 में रघुनाथ महतो चुआड़ विद्रोह के महानायक थे
उनके नेतृत्व में यह आंदोलन तेजी से फैल रहा था। फर्सा,तीर-धनुष,तलवार,भाला से लैस और गुरिल्ला युद्ध में निपुण उनकी सेना ने करीब 10 साल तक अंग्रेजी हुकुमत के छक्के छुड़ा दिए थे। 1769-1778 के बीच वीर रघुनाथ महतो और उनके साथियों ने सैकड़ो अंग्रेजी अफसर और सैनिकों को मार दिया था। इससे परेशान होकर ब्रिटिश हुकुमत ने उनके ऊपर बड़ा इनाम घोषित किया था।
5 अप्रैल,1778 की रात वीर रघुनाथ महतो अपने साथियों के साथ सिल्ली प्रखंड के लोटा पहाड़ किनारे अंग्रेजों के रामगढ़ छावनी से हथियार लूटने की योजना बना रहे थे। तभी अंग्रेजी सेना ने घेराबंदी करके ताबडतोड़ गोलियाँ बरसानी शुरु कर दी। महतो सहित उनके कई साथी अंतिम साँस तक अंग्रेजों को मुंहतोड़ जवाब देते हुए शहीद हो गए। वो जहाँ वीरगति को प्राप्त हुए वहाँ उनकी स्मृति में पत्थर गाड़े गए, जो आज भी उनके शौर्य और शहादत की कहानी बयान करते हैं।
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