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जून 1984 की वो खौफनाक घटना, जिसे पंजाब कभी नहीं भुला सकता, जानिये ऑपरेशन ब्लूस्टार की पूरी कहानी

“सरकार ने कुछ ही दिनों में मेरे लिए वह कुछ कर दिया है, जो मैं वर्षों में भी प्राप्त न करता”।

ऊपर लिखा हुआ कथन जनरैल सिंह भिंडरावाला का है, वही जनरैल सिंह भिंडरावाला जो खलिस्तानी चरमपंथियों का नेता था। 1947 में जन्मा भिंडरावाला पतला, छः फुट लम्बा और प्रभावशाली व्यक्तित्व का इंसान था। कुछ ही वर्षों में भिंडरावाला पंजाब में एक प्रभावशाली राजनीतिज्ञ और धार्मिक शख़्सियत के तौर पर उभर गया।

जिस वक़्त भिंडरावाला अपने पैर फैला रहा था पंजाब की राजनीति में अकाली नेताओं का दबदबा था, प्रकाश सिंह बादल मुख्यमंत्री थे।

भिंडरावाला पंजाब की राजनीति में बड़ी ही तेज़ी से आगे बढ़ा था, 13 अप्रैल 1978 की बैसाखी पर अमृतसर में निरंकारियों का एक सम्मेलन हो रहा था, भिंडरावाला के नेतृत्व में बनी दल खालसा को यह सम्मेलन नामंजूर था। भिंडरावाला और उस के समर्थक तलवारें लहराते “राज करेगा खालसा” का नारा लगाते हुए सम्मेलन की ओर बढ़ रहे थे। सम्मेलन स्थल तक पहुंच कर भिंडरावाला के एक समर्थक फौजा सिंह ने तलवार से निरंकारी बाबा गुरबचन सिंह पर हमला कर दिया , फौजा सिंह को बाबा गुरबचन सिंह के अंगरक्षक ने मार दिया और इस के बाद ही सम्मेलन स्थल में हिंसा भड़क उठी। कुल मिलाकर 13 सिख और निरंकारियों की जान गई । यह वो वक़्त था जब भिंडरावाला और भी ज़्यादा बढ़ता चला गया।

इस घटना के कुछ ही दिनों बाद दल खालसा ने चंडीगढ़ में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की। सतीश जैकब लिखते हैं कि इस प्रेस कॉन्फ्रेंस का बिल आगे राष्ट्रपति बनने वाले ज्ञानी जैल सिंह ने भरा था। ज्ञानी जैल सिंह पर हमेशा यह आरोप लगता रहा है कि उन्होंने भिंडरावाला को समर्थन दिया था। 1981 में ज्ञानी जैल सिंह ने गृहमंत्री रहते हुए पार्लियामेंट में घोषणा की थी कि भिंडरावाला को रिहा किया जा रहा है क्योंकि इस बात का कोई साक्ष्य नहीं मिला है कि हिन्द समाचार पत्र समूह के लाला जगतनारायण के कत्ल में वो शामिल थे। साल 1982 में भिंडरावाला ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर को अपना ठिकाना बना लिया, वो अब वहीं से सारे आदेश जारी करता था।

ऑपेरशन ब्लू स्टार की शुरुआत

5 जून की तारीख पर सुबह करीब साढ़े 10 बजे हथियारों से लैस जिसमे MP-5 सबमशीन गन और AK 47 शामिल थी ,20 जवान मंदिर परिसर के अंदर दाखिल हुए। इस आपरेशन की अगुवाई मेजर जनरल कुलदीप सिंह बराड़ कर रहे थे। बराड़ बताते हैं ” पाँच तारीख की सुबह साढ़े चार बजे मैं हर बटालियन के पास गया और उनके जवानों से करीब आधे घंटे बात की.”

“मैंने उनसे कहा कि स्वर्ण मंदिर के अंदर जाते हुए हमें ये नहीं सोचना है कि हम किसी पवित्र जगह पर जा कर उसे बर्बाद करने जा रहे हैं, बल्कि हमें ये सोचना चाहिए कि हम उसकी सफ़ाई करने जा रहे हैं. जितनी कैजुएलटी कम हो उतना अच्छा है.”

“मैंने उनसे ये भी कहा कि अगर आप में से कोई अंदर नहीं जाना चाहता तो कोई बात नहीं. मैं आपके कमाडिंग ऑफ़िसर से कहूँगा कि आपको अंदर जाने की ज़रूरत नहीं है और आपके ख़िलाफ़ कोई एक्शन नहीं लिया जाएगा.”

“मैं तीन बटालियंस में गया. कोई नहीं खड़ा हुआ. चौथी बटालियन में एक सिख ऑफ़िसर खड़ा हो गया. मैंने कहा कोई बात नहीं अगर आपकी फ़ीलिंग्स इतनी स्ट्रांग है तो आपको अंदर जाने की ज़रूरत नहीं.”

“उसने कहा आप मुझे ग़लत समझ रहे हैं. मैं हूँ सेकेंड लेफ़्टिनेंट रैना. मैं अंदर जाना चाहता हूँ और सबसे आगे जाना चाहता हूँ. ताकि मैं अकाल तख़्त में सबसे पहले पहुँच कर भिंडरावाले को पकड़ सकूँ.”

उधर जनरैल सिंह भिंडरावाला के मिलिट्री कमांडर शाहबेग सिंह थे। शाहबेग सिंह ने 1971 में बांग्लादेश के ख़िलाफ़ युद्ध लड़ा था मगर बाद में उन का कोर्ट मार्शल कर दिया गया।

शाहबेग सिंह और भिंडरावाला अकाल तख्त में छिपे हुए थे। भारतीय सेना के आगे बढ़ने पर गोलियां चलनी शुरू हो गईं, जवानों को छुपाना पड़ा ,चारों तरफ कार्बाइन और मशीनगन चल थीं। सेना ने APC को आगे किया ताकि जवान आगे बढ़ सकें पर वह भी सफल नहीं हुआ।

अगले दिन यानी 6 जून की सुबह तीन विजयन्ता टैंक परिसर में लाये गए। गोले दागकर अकालतख्त के दीवार गिरा दी गई। जवान तेजी से अंदर गए और उन्होंने अकाल तख्त को कब्जे में ले लिया।

सेना को 7 जून की सुबह भिंडरावला की लाश मिली साथ ही शाहबेग सिंह की भी लाश मिली। लाशों के साथ 51 मशीन गन मिलीं। अगले तीन दिन में छिपे हुए उग्रवादियों को भी पकड़ लिया गया। 10 जून को आपरेशन ब्लू स्टार पूरी तरह ख़त्म हो गया। इस आपरेशन की कीमत में इंदिरा गांधी को अपनी जान गंवानी पड़ी, उनकी हत्या कर दी गई।

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