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वो ओपनर जिस के लिए कलकत्ता के लोगों ने नारे लगाए: “नो मुश्ताक नो टेस्ट”

सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी मतलब आई पी एल खेलने की चाभी।

अगर आप क्रिकेट पसन्द करते हैं, मतलब जबर तरीके से पसंद करते हैं तो आप सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी के बारे में भी ज़रूर जानते होंगे। वही ट्रॉफी जिस में प्रदर्शन के दम पर युवा खिलाड़ी आई पी एल में अपनी जगह बनाते हैं। सीधे शब्दों में कहें तो सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी मतलब आई पी एल खेलने की चाभी।

आज कहानी उन्हीं सैयद मुश्ताक अली की, जिनकी आज बरसी है।

मध्यप्रदेश के इंदौर में 17 दिसम्बर 1914 को जन्मे मुश्ताक को शुरुआत में बल्ले से नहीं बल्कि गेंद से ज़्यादा लगाव था माने वो बैटिंग नहीं बॉलिंग करते थे और शायद यही वजह है कि घरेलू क्रिकेट में मुश्ताक अली के नाम 162 विकेट हैं। अपने क्रिकेट के करियर की शुरुआत भी मुश्ताक ने बोलिंग से ही की, लेफ्ट आर्म स्पिनर के रूप में खेल रहे मुश्ताक ने ये पहला मैच 1933-34 में ईडन गार्डन में खेला, इसी मैच में सातवें नम्बर पर बल्लेबाज़ी भी की।

अली का यह बोलिंग प्रेम बड़े स्तर पर नहीं रहा, वो पहचाने गए तो अपनी बैटिंग की वजह से। मुश्ताक की बैटिंग का तरीका आक्रामक था। वो ओपनर के तौर पर तो खेलते ही थे कभी कभी मिडिल ऑर्डर में भी खेले मगर खेल के तरीक़ों में किसी तरह का परिवर्तन नहीं रहता था।

सैयद मुश्ताक अली साल 1936 में इंग्लैंड के विरुद्ध खेलने वाली टीम में थे। टेस्ट इंग्लैंड में ही होने थे। यहाँ मुश्ताक को विजय मर्चेंट के साथ ओपनिंग करने भेज गया। शुरुआत आक्रामक की मगर 13 रन पर रन आउट हो गए। भारत का कुल स्कोर 203 पर आल आउट था।

इंग्लैंड ने बल्लेबाजी की और वैली हैमोंड के (167), स्टेन वोर्थिंगटन (87), जो हार्डस्टाफ (94), वाल्टर रॉबिन्स ( 76) और हेडली वेरिटी (66) की बल्लेबाजी की बदौलत स्कोरबोर्ड पर 571 रन टांगे , 8 विकेट के नुकसान पर। पारी डिक्लेअर की गई। भारत फिर बल्लेबाजी करने उतरा।

विजय मर्चेंट के साथ फिर एक बार मुश्ताक ओपनिंग करने के लिए उतरे, मगर इस बार ये दोनों ही ओपनर टिक गये , सैयद मुश्ताक अली ने 112 रन मारे , इस पारी में 17 चौके थे। इतनी ताबड़तोड़ बल्लेबाज़ी की अंग्रेजी गेंदबाज़ उन्हें समझ ही नहीं पाए। मुश्ताक ने जैसे ही ये शतक लगाया था वो इतिहास में पहले ऐसे भारतीय बन गए जिन्होंने विदेशी ज़मीन पर पहला टेस्ट शतक लगा दिया। इस मैच में विजय मर्चेंट ने भी शतक लगाया था, रन थे 114।

मुश्ताक 112 के निजी स्कोर पर वाल्टर रॉबिन्स की गेंद पर कॉट एंड बोल्ड हुए । भारत ने यह मैच ड्रा कर दिया। उनकी इस पारी से भारतीय टीम के कप्तान महाराजा ऑफ विज़ीनगरम ने उन्हें सोने की घड़ी तोहफे में दी।

जब कलकत्ता में लोगों ने नारे लगाए “नो मुश्ताक-नो टेस्ट”

भारतीय टीम को कोलकाता में एक अनौपचारिक टेस्ट खेलना था, विपक्षी टीम ऑस्ट्रेलिया की सर्विसेस साइड थी। मैच के लिए जब टीम का नाम घोषित किया गया तो उस में मुश्ताक का नाम नहीं था। इस बात से कोलकाता के लोग इतने खफ़ा हुए कि सेलेक्टिंग कमेटी के चैयरमैन दिलीप सिंह को घेर कर नारे लगाने लगे , नारे थे ” नो मुश्ताक – नो टेस्ट”. सेलेक्टिंग कमेटी को हारना पड़ा, और मुश्ताक टीम में शामिल हुए।

सैयद मुश्ताक अली का कैरियर छोटा ही रहा, उन्होंने कुल 11 ही टेस्ट खेले जिन में 20 परियों में 612 रन बनाये और 32.21 का एवरेज बनाये रखा। उन्हें ज़्यादा मौके नहीं मिले वरना उनके आंकड़े शायद कुछ और ही होते। साल 1964 में उन्हें पद्मश्री मिला। 18 जून 2005 को मुश्ताक का इंतकाल हो गया । इंतकाल के वक़्त मुश्ताक 91 बरस के थे ।

साल 2008 -2009 में इनके नाम पर सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी शुरू की गई , वही ट्रॉफी जो अब आई पी एल खेलने की चाभी है।

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