Ranji Trophy Final : जिस चंद्रकांत पण्डित का 23 साल पहले टूटा था सपना, आज कोच बनकर 23 साल बाद उसने रच दिया इतिहास

Ranji Trophy Final Chandra kant pandit

Ranji Trophy Final:  मध्य प्रदेश के खिलाड़ी रजत पाटीदार ने जैसे ही विनिंग रन मारे ,मध्य प्रदेश के सारे खिलाड़ी ग्राउंड पर खुशी में दौड़ते हुए आ गए. उनके पीछे धीमी चाल में एक शख़्स आंसुओं से तर ग्राउंड में आ रहा था. ये आँसू ख़ुशी के थे. एक ख़्वाब के पूरे होने के. ख़्वाब जिसे पूरा होने में 23 बरस लग गए.

Ranji Trophy Final : साल 1999. रणजी ट्रॉफी फाइनल. मध्य प्रदेश की टीम के सामने मजबूत टीम थी. टीम का नाम था ‘कर्नाटक’. कर्नाटक ने बंगलुरू के मैदान पर 247 रनों का स्कोर खड़ा किया. मध्य प्रदेश जब इसे चेज़ करने उतरी तो उन की पारी सम्भल ही नहीं पाई. पूरी टीम 150 रन पर सिमट गई. कर्नाटक ने मैच 96 रन से यह मैच जीत लिया.

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23 साल बाद , साल 2022. कनार्टक के इसी मैदान पर मध्य प्रदेश फिर एक बार रणजी फाइनल खेल रही थी, सामने थी मुम्बई जैसी मजबूत टीम. मगर इस बार मध्य प्रदेश के इरादे कुछ और ही थे. मध्य प्रदेश बंगाल को हराकर फाइनल पहुंची थी और उस के हौसले बहुत बुलन्द थे. मध्य प्रदेश ने फाइनल खेला. खेला ही नहीं बल्कि जीते. 6 विकेट की इस जीत ने मध्य प्रदेश के 88 साल का सूखा ख़त्म कर दिया.

मगर 1999 और 2022 के रणजी ट्रॉफी सीजन में एक व्यक्ति कॉमन था. मध्य प्रदेश की रणजी ट्रॉफी की जीत इस शख़्स के लिए बेहद मायने रखती है. नाम है “चंद्रकांत पंडित”.

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साल 1999 में चंद्रकांत मध्य प्रदेश की टीम के कप्तान थे. उन्होंने टीम को फाइनल में पहुंचाया मगर ख़िताब हासिल नहीं कर पाए. इस साल यानि 2022 में चंद्रकांत पंडित मध्य प्रदेश के कोच थे और मध्य प्रदेश को रणजी विजेता बनाने का 23 साल पुराना ख़्वाब पूरा करने उतरे थे. 23 साल पुराना सपना पूरा हो चुका था. चंद्रकांत ने मध्य प्रदेश को रणजी ट्रॉफी विजेता बना ही दिया.

चंद्रकांत रणजी के सबसे सफल कोच माने जाते हैं मध्य प्रदेश के पहले चंद्रकांत विदर्भ के कोच थे और अपनी कोचिंग में ही विदर्भ को लगातार दो बार चैंपियन का ख़िताब दिलाया था. वे मुम्बई के लिए भी बतौर खिलाड़ी और कोच रह कर खेले हैं और ट्रॉफी भी उठाई है. उन्होंने सौराष्ट्र को भी यह ख़िताब ऊनी कोचिंग में जितवाया है. और अब इस लिस्ट में एक नाम अंडरडॉग कही जानेवाली मध्य प्रदेश का भी जुड़ गया है.

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और एक मजेदार बात ये भी है कि रणजी ट्रॉफी फाइनल में जो दो टीमें आज आमने सामने थीं उन दोनों के ही कोच मुम्बई के पूर्व खिलाड़ी रह चुके हैं. उस पर भी मजेदार ये कि मुम्बई के मौजूदा कोच अमोल मजूमदार कभी चंद्रकांत की कोचिंग में मुम्बई से रणजी खेलते थे.

चन्द्रकांत को दो साल पहले मध्य प्रदेश का कोच बनाया गया था. शुरू में नतीजे अच्छे न मिलने पर आलोचना भी हुई मगर पंडित ज़रा भी प्रभावित नहीं हुए. उन्होंने कड़ी कोचिंग दी और नतीजतन मध्य प्रदेश ने अपना पहला ख़िताब जीत ही लिया.

चंद्रकांत पंडित को अक्सर ओ बेशतर खड़ूस भी कहा जाता रहा है. वजह साफ है कि वे कड़क कोच हैं खिलाड़ियों के प्रति उनका सख़्त रवैया रहता है ताकि अनुशासन में किसी तरह की गड़बड़ी न हो. वे बस से उतरते ही खिलाड़ियों के फोन ले लेते हैं और फिर मैच के बाद ही वापस करते हैं. सीधा सा फंडा ये कि “बेटा कायदे में रहोगे तो फ़ायदे में रहोगे”.

चंद्रकांत ने भारत के लिए भी खेला. भारत के लिए पंडित ने 5 टेस्ट और 36 वन डे खेले हैं. 1986 में इंग्लैंड के ख़िलाफ़ टेस्ट डेब्यू करने वाले चंद्रकांत बतौर विकेट कीपर बल्लेबाज़ खेलते थे. साल 1992 में बेसन एंड हेजेस वर्ल्ड सीरीज भी खेली. चंद्रकांत 41 अंतरराष्ट्रीय मैच खेले और
महज 461 रन बनाए.

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घरेलू क्रिकेट में चंद्रकांत के आंकड़े ज़बरदस्त हैं, प्रथम श्रेणी के 138 मैच में 48.57 के औसत से 8209 रन बना चुके पंडित ने 22 शतक और 42 अर्धशतक ठोके हैं.

एक खिलाड़ी के तौर पर भले ही चंद्रकांत का मध्य प्रदेश को चैंपियन बनाने का सपना पूरा नहीं हो पाया था मगर इतने साल बाद एक कोच के रूप में वो ख़्वाब पूरा हो गया है. जीतने के बाद टीम के खिलाड़ियों ने अपने कोच को कंधों पर उठाया. पर यह नहीं भूलना चाहिए कि इस कोच ने जीतने तक ये टीम अपने कंधों पर उठाई हुई थी.

खिलाड़ियों के पीछे रोता हुआ आता शख़्स ‘चंद्रकांत पंडित’ ही थे. एक खड़ूस, कड़क कहे जाने वाले कोच के आंसू बताते हैं कि उस के लिए यह ट्रॉफी कितनी महत्वपूर्ण थी. यह ख़्वाब कितना मायने रखता था.

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