Syama Prasad Mukherjee : कश्मीर के लिए जान गंवाने वाले श्यामा प्रसाद मुखर्जी

Dr. Shamprasad Mukherjee

Syama Prasad Mukherjee “जहाँ हुए बलिदान मुखर्जी वह कश्मीर हमारा है”. भारतीय जनता पार्टी के द्वारा इस नारे का इस्तेमाल हमेशा कश्मीर मुद्दे के लिए किया जाता रहा है. जिन “मुखर्जी” के बलिदान की बात इस नारे में की जाती रही है उनका नाम है “श्यामा प्रसाद मुखर्जी”. आज की भारतीय जनता पार्टी के फादर फिगर में से एक.

23 जून को भारतीय जनता पार्टी बलिदान दिवस के रूप में मनाती है. यह दिन भी इन्हीं श्यामा प्रसाद मुखर्जी से जुड़ा हुआ है. 23 जून 1953 को मुखर्जी की रहस्मयी तरीके से मृत्यु हो गई थी. मुखर्जी अनुच्छेद 370 के बहुत बड़े विरोधी रहे थे.आज श्यामा प्रसाद मुखर्जी की पुण्यतिथि होती है.

Dr._Syama Prasad Mukherjee

साल 1901 में छः जुलाई को श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म उस वक़्त के बंगाल के प्रख्यात शिक्षाविद आशुतोष मुखर्जी के घर कोलकाता में हुआ था. मुखर्जी का परिवार बेहद समृद्ध और सम्भ्रांत था.

अपनी शिक्षा मुखर्जी ने कोलकाता में ही पूरी की थी. कोलकाता विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद साल 1926 में सीनेट के सदस्य बन चुके थे और साल 1927 में वे बैरिस्टर हो गए.

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(L to R sitting) B. R. Ambedkar, Rafi Ahmed Kidwai, Sardar Baldev Singh, Maulana Abul Kalam Azad, Jawaharlal Nehru, Rajendra Prasad, Sardar Patel, John Mathai, Jagjivan Ram, Amrit Kaur and Syama Prasad Mukherjee. (L to R standing) Khurshed Lal, R.R. Diwakar, Mohanlal Saksena, N. Gopalaswami Ayyangar, N.V. Gadgil, K. C. Neogy, Jairamdas Daulatram, K. Santhanam, Satya Narayan Sinha and B. V. Keskar.

श्यामा प्रसाद मुखर्जी कोलकाता यूनिवर्सिटी में ही अध्यापन का कार्य करने लगे और महज 33 वर्ष की आयु में ही कोलकाता विश्वविद्यालय के कुलपति बन गए. उन्होंने इस पद पर चार साल तक रहकर काम किया था और इस के बाद अपनी राजनौतिक शुरुआत करते हुए वे कोलकाता विधानसभा पहुंच गए.

पंडित जवाहर लाल नेहरू के अंतरिम सरकार में वे मंत्री भी थे, मगर बहुत कम समय के लिए . मुखर्जी राष्ट्रवाद के समर्थक थे और अक्सर नेहरू पर आरोप लगाते कि वो तुष्टिकरण करते हैं. वे कश्मीर को लेकर बहुत आक्रामक रवैया रखते थे. कश्मीर के संदर्भ में दिया ये नारा ” एक निशान, एक प्रधान,एक विधान” उनका ही था.

B. R. Ambedkar (R), father of the Constitution of India, and Syama Prasad Mukherjee (L), talking on the Campus of Parliament, 1951

साल 1950 में जब नेहरू और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री लियाकत अली के बीच एक समझौता हुआ तो मुखर्जी बेहद नाराज़ हुए, उन्होंने मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दिया. इस के बाद मुखर्जी और नेहरू में मतभेद बढ़ने लगे गए.

मुखर्जी संघ के दूसरे सरसंघचालक गुरु गोलवलकर से प्रभावित थे और उनसे मिलकर ही 21 अक्टूबर 1951 के दिन उन्होंने जन संघ की स्थापना की. यही जनसंघ साल 1980 में भारतीय जनता पार्टी बनता है और आज भारत की सत्ता रूढ़ पार्टी है. साल 1951- 52 के चुनाव में मुखर्जी जनसंघ से ही सांसद निर्वाचित हुए थे.

मुखर्जी का कश्मीर को लेकर रवैया हमेशा सख़्त था. उनका मानना था कि कश्मीर को विशेष दर्जा नहीं देना चाहिए न ही वहाँ जाने के लिए किसी अनुमति की ज़रूरत होनी चाहिए. वे 370 को भी नकारते रहे.

साल 1953 में आठ मई के रोज़ वो दिल्ली से कश्मीर की ओर निकल पड़े. वे बिना अनुमति के निकले थे. 10 मई को जालंधर में उन्होंने कहा ” हम जम्मू कश्मीर में बिना अनुमति के जाएं, ये हमारा मूलभूत अधिकार होना चाहिए.”

वे 11 मई के दिन श्रीनगर में गिरफ़्तार किये गए और उन्हें जेल भेज दिया गया. कुछ हफ्तों बाद जब उन्हें छोड़ा गया उनकी स्थिति नाज़ुक रहने लगी. 22 जून को मुखर्जी की तबियत बिगड़ने लगी और 23 जून को सन्दिग्ध परिस्थितियों में मुखर्जी की मौत हो गई.

भारतीय जनता पार्टी आज भी मुखर्जी की मौत को सन्दिग्ध कह कर हत्या बताती है. हालांकि मुखर्जी का सपना कि 370 अनुच्छेद हट जाए, उनकी मौत के 65 साल बाद साल 2018 में पूरा हो गया. जब इस अनुच्छेद को ‘इनऑपरेटिव’ कर दिया गया.

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