Sanjay Gandhi “मेरी नज़र में भारतीय राजनीति में उनका वजूद एक मामूली ‘ब्लिप’ की तरह था.”
मशहूर पत्रकार विनोद मेहता ने ये शब्द (Sanjay Gandhi) संजय गांधी के लिए कहे थे। संजय गांधी, इंदिरा गांधी के छोटे बेटे. कहा जाता था कि संजय इंदिरा के राजनीतिक उत्तराधिकारी थे. आज संजय गांधी की बरसी है.
संजय गांधी (Sanjay Gandhi) की जिस विमान हादसे में मौत हुई उसे पिट्स विमान हादसा कहा जाता है. संजय गांधी को विमान उड़ाने का बड़ा शौक था, संजय गांधी विमान को कभी विमान समझ कर नहीं चलाते थे बल्कि ऐसे चलाते जैसे कि वो कोई कार हो. मतलब उन्हें विमान भी रफ उड़ाना पसंद था.
साल 1976 में संजय को हल्के विमानों को चलाने का लाइसेंस मिल गया था, कुछ समय बाद जब इंदिरा सत्ता से हटी टी जनता सरकार ने उन से लायसेंस छीन लिया. बाद में उन्हें उनका लाइसेंस वापस हासिल हुआ , हालांकि तब उनकी माँ सत्ता में वापस आ चुकीं थीं।
मई 1980 में भारत में पिट्स एस 2 ए विमान लाया गया था और सफदरजंग हवाई अड्डे में स्थित दिल्ली फ्लाइंग क्लब में पहुंचा दिया गया। संजय गाँधी इस विमान को सबसे पहले उड़ाना चाह रहे थे मगर ऐसा नहीं हुआ।
21 जून 1980 को संजय गांधी (Sanjay Gandhi) ने पहली बार पिट्स विमान को उड़ाया. 22 जून को अपनी पत्नी को साथ ले कर ये विमान उड़ाया.
23 जून 1980 की सुबह संजय गांधी हरी मेटाडोर कार में बैठ कर निकले थे. जिस वक्त वो घर से निकले उनकी पत्नी मेनका उनके बेटे वरुण को संभालने में लगीं थी जिनकी उम्र उस वक़्त 3 महीने की. संजय गांधी जिस जगह के लिए घर से निकले थे वह थी सफदरजंग एयरपोर्ट का दिल्ली फ्लाइंग क्लब.
23 जून के रोज़ संजय गांधी के साथ प्लेन में माधवराव सिंधिया बैठने वाले थे मगर संजय दिल्ली फ्लाइंग क्लब के
पूर्व इंस्ट्रक्टर सुभाष सक्सेना के घर पहुंचे और उन्हें साथ ले लिया.
पिट्स विमान लाल रंग का था, बड़ा ख़ूबसूरत. इस विमान के विंग्स कलाबाजियों के लिए ही बने थे. पर जिस तरह से संजय विमान उड़ाते थे शायद उस के लिए नहीं. सुबह सात बजकर अट्ठावन मिनट पर संजय , सुभाष सक्सेना के साथ विमान पर सवार हुए और उड़ान भरी.
अपनी आदत के अनुसार ही संजय ने सारे सुरक्षा नियम ताक पर रखे और रिहायशी इलाके में विमान के तीन लूप लगाए , संजय ने चौथा लूप लिया और नीचाई पर विमान को गोते खिलाये, यहां पर संजय का कंट्रोल विमान से छूट गया , सक्सेना ने नीचे देखा विमान के इंजन ने काम करना बंद कर दिया है, विमान अपनी नोक के बल अशोका होटल के पीछे कहीं गुम हो गया. विमान गिर चुका था. सक्सेना के सहायक ने यह होते देखा था और साईकल से सबसे पहले पहुंचा था.
प्लेन के मलबे के नीचे से फायर ब्रिगेड ने संजय और सुभाष की लाशें निकालीं, जब इंदिरा गांधी वहां पहुंची तो लाशें निकाली जा चुकीं थीं , इंदिरा ने संजय को देखा तो ज़ार ज़ार रोने लगीं. सजंय गांधी एवं सक्सेना को अस्पताल ले जाया गया. संजय की लाश को सेट करने में डॉक्टरों ने चार घण्टों का वक़्त लिया,जब लाश सेट हो गई तो इंदिरा ने डॉक्टर्स को बाहर जाने के लिए कहा. उन्होंने कहा “मुझे मेरे बेटे के पास कुछ मिनट के लिए अकेला छोड़ दीजिए”.
संजय की पत्नी मेनका उसी कमरे के बाहर बैठीं रहीं, वो टूट चुकीं थीं . अगले दिन अंतिम संस्कार के वक़्त इंदिरा हर वक़्त मेनका को थामे रहीं थीं। पुपुल जयकर लिखती हैं कि इंदिरा गांधी कभी भी इस सदमे से उबर नहीं पाईं, वो अक्सर संजय को खोजती, उनका चेहरा बूढ़ा दिखने लगा था और आंखों पर काले धब्बे आ चुके थे.
संजय गांधी विरोधियों के लिए आपातकाल के सबसे बड़े विलेन थे. जिस वक्त देश में आपातकाल था, संजय सेंसरशिप का सहारा ले कर पत्रकारों को धमका दिया करते थे. संजय ने तुर्कमान गेट से मलिन बस्तियां हटवाते वक़्त गोलियां चलवा दीं थीं. संजय जेल भी गए. पूरे 1 महीने जेल में रहे. बाद में उन्होंने साल 1980 में अपनी मां के साथ मिल कर काँग्रेस को सत्ता में वापस लाया. इस बार और बड़े तरीके से.
संजय गांधी मितभाषी और मुंह फट थे. जो कहना होता था साफ़ कहते थे. समय के पाबन्द थे. सारा काम व्यवस्थित करते थे. मगर 23 जून के दिन उनका नहीं था, न ही पिट्स के कलाबाजियों के लिए बने विंग्स का.
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