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Shree krishna and abhimanyu

Shree Krishna: कृष्ण ने आखिर क्यों नहीं बचाया अपने भांजे अभिमन्यु को ?

Shree Krishna: महाभारत का माहायोद्धा अभिमन्यु एक असाधारण योद्धा था जिसने अकेले दम पर कौरवों की प्रधान सेना को उनके अनुभवी ज्ञानी और सम्पन्न रणबांकुरे पर सवाल खड़े करने पर मज़बूर कर दिया ।

Shree Krishna: महाभारत की कहानियाँ सबने सुनी हैं। उन कहानियों की कुछ बातें हमे प्रेरणा से भर देती हैं तो वहीं कुछ हमारे मन में सवाल पैदा करती हैं। देखा जाए तो महाभारत की बिसात भांजे प्रेम मे बिछाई गई। जब शकुनि को लगा कि उसके भान्जो से उनका हक़ छीना जा रहा है तब उसने चौसर की बसात बिछाई और फिर घटनाक्रम बताते हैं कि कैसे भारत के स्वर्ण इतिहास की वो लडाई लड़ी गई जिसने रिश्तों से ऊपर अधर्म से परे धर्म की स्थापना की। उसी लड़ाई मे एक ऐसा नाम सामने आया जिसने युगों-युगों तक योद्धाओं को प्रेरित किया और आगे भी करता रहेगा। वह नाम था अभिमन्यु।

अभिमन्यु अर्जुन और सुभद्रा का पुत्र था । जब अभिमन्यु सुभद्रा के गर्भ मे था तब अर्जुन ने सुभद्रा को चक्रव्यूह भेदन की कहानी सुनायी थी। तब से ही अभिमन्यु को यह ज्ञात था कि सारे द्वारों को कैसे भेद्ना है। परंतु आखिरी द्वार की भेदन कथा सुनने से पहले ही सुभद्रा सो गई और अभिमन्यु ने वह नही सुना। जिसका परिणाम यह हुआ कि महाभारत के महायुद्ध में अभिमन्यु आखिरी द्वार के चक्रव्यूह मे फंस कर वीरगति को प्राप्त हुआ ।

Shree Krishna: अभिमन्यु से जुड़ी अन्य रोचक कहानियां

अभिमन्यु से जुड़ी कई किद्वन्तिया हैं।। उनमे से दो कथाएं हैं जो पांडव पुराण, भील कथाओं आदि में प्रचलित हैं। चलिये उन्हीं किद्वन्तियौ को और करीब से जान कर पता करते हैं कि आखिर कौन था अभिमन्यु और क्यों था वो इतने विलक्षण व्यक्तित्व का स्वामी ।

Shree Krishna Abhimanyu
Abhimanyu in kuru

सोम पुत्र वर्चस

माना जाता है कि ब्रम्हा जी ने सभी देवताओं से अनुरोध किया की अधर्म पर धर्म की विजय के लिए उन्हें धरती पर जाना होगा और पांडवो की सहयता करनी होगी। इस कार्य के लिए सोम पुत्र वर्चस को चुना गया। सोम को अपने पुत्र वियोग का दुख था और इसलिये उन्होनें ब्रम्हा जी से कहा कि वो कुछ ऐसा करें जिससे उनका पुत्र वर्चस जल्द ही स्वर्ग लोक वापस आ जाये। ब्रम्हा जी ने कहा की धरती पर वर्चस की अल्प आयु होगी और वो जल्द ही एक विशेष कार्य करके वापस आ जाएगा।

वर्चस को ही क्यों चुना गया?

सोम(चन्द्र देव) एक ऐसे देव हैं, जिन्हे हमेशा ही अपने विलासिता के लिए जाना जाता है। माना जाता है कि उन्होने कई देवियों एवं अप्सराओ के साथ संबंध बनाए थे । किन्तु एक वक़्त आया जब उन्हीने बृहस्पति ऋषी की धर्मपत्नी तारा के साथ भी संबंध बनाए जिसके कारण एक युध्द शुरु हो चुका था। जब बृहस्पति ऋषी ने देवताओं से आग्रह किया कि उन्हे उनकी पत्नी वापस चाहिये। तब सोम के व्यवहार से परेशान होकर देवताओं ने हाँ करदी। सोम ने असुरों की मदद ली और देवताओं से युध्द किया। सोम में विलासता आदि आसुरी प्रवृत्तियां थीं और फिर यह असुरों के साथ मिलकर युद्ध करना भी उन प्रवृत्तियों में एक बढ़ोत्तरी थी।

इसी बीच सोम पुत्र वर्चस का जन्म हुआ जिसमे आसुरी शक्तियाँ विद्दमान थी और इसी कारणवश उसे पराजित करना असम्भव था। यही कारण था कि अपराजित वर्चस को धरती पर भेजा गया था। अगर सोम ने यह ना मांगा होता कि उन्हे अपना पुत्र वर्चस जल्द ही वापस चाहिये तो शायद महाभारत का अभिमन्यु इतनी जल्दी वीरगती को प्राप्त ना हुआ होता।

अभिकासुर ही अभिमन्यु था

ऐसा माना जाता है कि अभिमन्यु, अभिकासुर नाम का एक असुर था जिसे कंस ने कृष्ण को मारने के लिये भेजा था। किन्तु जब तक अभिकासुर कृष्ण पर हमला करता उससे पहले ही कृष्ण ने उसकी आत्मा को एक पोटली में बन्द कर के रख लिया था। और साथ ही साथ सुभद्रा को मना किया की वो कभी ये पोटली ना खोलें परंतु वर्षों बाद जैसे ही सुभद्रा ने वो पोटली खोल कर देखी उसी वक़्त अभिकासुर उनके अन्दर समा गया और सुभद्रा गर्भवती हो गयीं।
कृष्ण ने रिश्तों से ऊपर धर्म को दिया महत्व कृष्ण का अवतार ही धर्म की स्थापना के लिए हुआ था। जब से उन्होनें जन्म लिया तब से ही उन्होनें अधर्म का विनाश किया। इसीलिए उन्होनें अपने भांजे अभिमन्यु की रक्षा नही की। जबकी वो अपनी बहन और भांजे से एक समान प्रेम करते थे।

अभिमन्यु की रक्षा ना करने का कारण यही था कि वो एक असुर था जिसके अंदर असीम शक्तियाँ थी। तो आज नहीं तो कल वह अपने असली रूप मे आकर अधर्म को बढावा देने का प्रयास करता। साथ ही साथ कृष्ण ब्रम्हा जी के वचन को भी नहीं रोक सकते थे इसीलिए उन्होनें वह होने दिया जो पहले से निर्धारित था। उन्होंने अपनी दैवीय शक्तियों का प्रयोग कभी भी अपने लिये नही किया। वो धर्म की स्थापना के लिए ही इस धरती पर आए थे और उन्होंने वही किया। उन्होने जो ज्ञान अर्जुन को दिया था कि “किसी भी रिश्ते से ऊपर है धर्म”, वही रास्ता उन्होनें स्वयं भी चुना।
धर्मो रक्षित:।

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