“वर्ल्ड कप चार साल में एक बार होता है बोर्ड परीक्षाएं तो हर साल होंगी।”
पूर्व भारतीय महिला क्रिकेट टीम की कप्तान मिताली राज के पिता ने उन से ये बात तब कही थी जब साल 2000 में मिताली के इंटर जोनल टूर्नामेंट थे, जिसके आधार पर ही न्यूजीलैंड में होने वाले वर्ल्ड कप के लिए सिलेक्शन होने थे। उसी वक़्त मिताली के बोर्ड एग्जाम भी थे। मिताली ने पिता की बात मानी, क्रिकेट खेला और ऐसा खेला कि टीम में सेलेक्ट हुईं, वर्ल्ड कप में ग़ज़ब का प्रदर्शन किया और आने वाले दो ही सालों में टीम की उप कप्तान बना दी गईं। उस के बाद तो बस इतिहास बनता चला गया।
आज मिताली में अपने 23 साल के कैरियर को विराम दे दिया। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से सन्यास की घोषणा की है। मिताली ने अपने ट्विटर हैंडल के ज़रिए ये जानकारी दी है। अपने देश के लिए 100% देने की बात कहते हुए मिताली ने एक लंबी चिट्ठी पोस्ट की।
अपनी बल्लेबाज़ी से मिताली ने न जाने कितने ही रिकॉर्ड बनाये। वो महिलाओं के वन डे में सबसे ज़्यादा अर्धशतक लगाने वाली खिलाड़ी हैं। उन्होंने 7000 से ज़्यादा रन बनाए। ऐसा करने वाली वो एकलौती खिलाड़ी हैं।
मिताली अपने बचपन को याद इंडिया टुडे को कर बताती हैं:
” मैं उस समय आठ-नौ साल की थी. भाई के दोस्तों और उनके ट्रेनर्स ने मेरा बहुत हौसला बढ़ाया. मुझे नेट पर कुछ शॉट्स मारने की परमीशन भी मिल जाती थी. परिवार ने भी लड़का-लड़की नहीं देखा. रुचि देखी और उस जुनून को आगे बढ़ाने के लिए अवसर दिया. उन्होंने कभी पढ़ाई पर ध्यान देने, नौकरी खोजने और शादी करने जैसी चीजों की तरफ धकेला नहीं. बस उन्होंने लगातार मुझे अपने इंट्रेस्ट के हिसाब से आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया.”
– मिताली
1999 में भारत के लिए डेब्यू करने वाली मिताली ने अपने पहले मैच में आयरलैंड के खिलाफ 114 रन ठोक दिए थे।
मिताली का औसत 51 से ज़्यादा का रहा जो किसी भी महिला क्रिकेट खिलाड़ी का नहीं है, मतलब यहाँ भी मिताली सबसे आगे रहीं।
मिताली जब 10 बरस की थीं तब से ही क्रिकेट खेलने लग गईं थीं। मिताली कहती हैं कि अगर वो क्रिकेट न खेलतीं तो सिविल सेवा में होतीं। उन्हें किताबो का भी बड़ा शौक है, यही वजह है कि मिताली अपनी किट के साथ किताब भी लिए हुए दिख जाती हैं। मगर मिताली कहती हैं कि क्रिकवत और किताब से ऊपर उन के लिए कथक रहा है। अपनी ज़िंदगी के आठ साल मिताली ने कथक सीखने में लगाये थे।
साल 2009 के वर्ल्ड कप में भारत फाइनल पहुंच गया था। यह पहली बार था , कप्तान मिताली थीं । ऑस्ट्रेलिया के हाथों फाइनल में हम हार गए थे। मगर मिताली रुकी नहीं , उन में क्रिकेट बचा था।
उन्होंने 100 से ज़्यादा वन डे खेले, ये भी एक रिकॉर्ड है। उन्होंने साल 2002 में अपने तीसरे टेस्ट मैच में 209 रन बनाए , साल 2004 तक यह रिकॉर्ड था। 2004 में पाकिस्तान की किरन बलूच ने ये रिकॉर्ड तोड़ा। 2005 में आई सी सी की रैंकिंग में मिताली नम्बर एक बनी। 2003 में उन्हें अर्जुन अवार्ड मिला और 2015 में पद्म श्री से सम्मानित हुईं।
मिताली ने अपने 23 साल के करियर को अलविदा कह दिया है, यह भारतीय महिला क्रिकेट में एक खाली स्थान है, आने वाली क्रिकेटर, खेल रहीं क्रिकेटर मिताली को अपना आदर्श स्थापित करती हैं। मैं अब भी सोचता हूँ अगर उस दिन मिताली अपनी बोर्ड परीक्षाएं चुन लेतीं तो क्या होता?
ख़ैर मिताली आपने महिला क्रिकेट को ऊंचाइयां दिखाईं, ये ऊंचाई आपने कंधों से देखी गई हैं, आज भारतीय महिला क्रिकेट बड़ा हो चला है , आप के प्रति कृतज्ञ है। कृतज्ञ हैं हम लोग जिन्होंने आपको खेलते देखा, जी भर कर खेलते देखा। आपको भविष्य की शुभकामनाएं।
One thought on “मिताली राज: यदि उस दिन बोर्ड परीक्षाएं चुन लीं होतीं तो कहानी और होती”